रविवार, 19 अक्तूबर 2014

मुफ्त का माल


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//  
इनदिनों बाज़ार में डरते-डरते घुसना पड़ता है। कोई सोच सकता है हमारा अपना बाज़ार है, ‘भारतीय बाज़ार’, उसमें डरते हुए घुसने की क्या ज़रूरत है, आराम से सीना फुलाकर घुसना चाहिए! मगर नहीं साहब, मेरे हिसाब से तो बिल्कुल डरते हुए ही घुसने की ज़रुरत है, क्योंकि इन वक्त हरेक दुकानदार अपनी दुकान में फ्रीका सामान लिए बैठा रहता है। रोजमर्रा के उपयोग वाले घरेलू सामान की बनिस्पत फ्रीमें बँटने वाले माल से ही सारी दुकान भरी रहती है। खुद दुकानदार को भी खड़े होने को जगह नहीं होती। फिर ग्राहक देव भी माले-मुफ्त के चक्कर में दुकान में आकर भीड़-भड़क्का करते हैं। ऐसी ठसा-ठसी में मुझ जैसा सीधा-शरीफ आदमी तो बेचारा घबराहट में मर ही जाए।
बड़े से बडे़ शो रूम का मैनेजर हो या छोटे-मोटे जनरल स्टोर का मालिक इस वक्त मनुहार, प्यार-मोहब्बत, नम्र निवेदन से, जैसे भी हो आपको जबरदस्ती फ्री का माल टिपाने की जुगत में रहता है। आप दुकान पर पहँुचे और उसने आपको मुफ्त का माल टिपाकर दुकान खाली की, ताकि अगला लॉट भरा जा सके। आप खरीदने कुछ जाओगे वह आपको फ्रीके चार अल्तुएके साथ कुछ और ही पकड़ा देगा जिनकी जन्म-ज़िन्दगी में आपको कोई ज़रूरत नहीं पड़ने वाली। जैसे, चाय-पत्ती लेने जाओगे तो दुकानदार आपको दो सेकंड की प्लास्टिक के गिलास थमा देगा। वाशिंग पाउडर खरीदने जाओगे तो वो दो घटिया से मग्गे पहले काउंटर पर निकालकर रखेगा फिर वाशिंग पाउडर का डिब्बा बाहर निकालेगा। आपको झक मार कर प्लास्टिक का यह कबाड़ अपने साथ ले जाना पडे़गा, क्योंकि आपको मालूम है चाय-पत्ती और वाशिंग पाउडर की कीमत के साथ उस माले-मुफ्त की कीमत भी जुड़ी हुई है।
एक बार बाज़ार में एक दुकान पर लिखा देखा-‘‘हमारे यहाँ हर सामान पर भरपूर मुफ्तउपहार गारन्टीड मिलेगा। मुफ्त के उपहारों पर भी ढेरों उपहार मुफ्त मिलने की पूर्ण संभावना। जल्दी से जल्दी आइए और मुफ्त दीपावली की खुशियाँ मनाइये।’’ अपने घर को दुनिया भर के कचरे से भर लेने के लालच में लोग खुद भी बाकायदा झुंड बनाकर ऐसी दुकानें ढूढ़ने निकलते हैं जहाँ से खरीदारी करने पर उनका झोला मुफ्त के माल से भर जाए।  
एक दिन मैं एक साड़ियों की दुकान की ओर निकल गया। दुकान पर एक सूचना पट्ट बड़ी बेफिक्री से लटका हुआ सूचना दे रहा था, जिसे देखकर मख्खी घुस जाने के डर के बावजूद मेरा मुँह खुला का खुला रह गया। आँखें कोटरों से बाहर आ गर्इं। बोर्ड पर लिखा था-छः साड़ी लेने पर आठ साड़ी मुफ्त, मात्र एक हज़ार रुपए में। यानी कि चौदह साड़ियाँ हज़ार रुपए में मतलब लगभग 70 रुपए की एक साड़ी। आजकल सत्तर रुपए की औकात ही क्या है! छोटे-मोटे शापिंग मॉल में पोछे का कपड़ा तीन-चार सौ रुपए से कम का नहीं मिलता। सोचा साड़ियाँ लूँ न लूँ कम से कम आफर को जी भर के निहार तो लूँ। जम गया तो जिन्दगी में पहली बार मुफ्त के माल से घरवाली को खुश कर दूँगा। दुकान में जाकर साड़ियाँ देखी तो पाया कि उनसे अच्छी साड़ियाँ तो घर की काम वाली बाई पहनकर आती है। उस बाई को भी यदि ये साड़ियाँ उपहार में दी जाएँ तो वह भी उन्हें मुँह पर मार कर चल दे। 
एक दुकान पर बेतहाशा भीड़ हो रही थी। लोग एक दूसरे के ऊपर चढ़े जा रहे थे। बोर्ड लगा था एक ब्रांडेड कमीज पर दो कमीज फ्री, दो ब्रांडेड कमीज पर तीन कमीज फ्री, तीन ब्रांडेड कमीज पर चार कमीज फ्री। मैंने दुकानदार से पूछा-भाई साहब वह कमीज़ कितने की है जिस पर आप फ्रीपर फ्रीकमीज़ें बाँटकर ग्राहकों को खुश कर रहे हैं। दुकानदार ठसक के साथ बोला-उनतीस सौ पिन्‍चानवे! एक मामूली कमीज़ की इतनी ऊँची कीमत सुनकर मेरे चेहरे का तो ब्रांड ही बदल गया, जिसे देखकर दुकानदार मुझ पर हिकारत की नज़रें बरसाता हुआ मात्र आधा वाक्य बोला- ‘‘ब्रांडेड है !’’ दुकानदार का आधा वाक्य मन ही मन मैंने खुद पूरा कर लिया - ‘‘तुम्हारे बाप ने भी कभी खरीदी है !’’
आगे कहीं पर एक जींस पर दो जींस फ्री की तख्ती लगी थी, और कहीं दो टी शर्ट पर तीन टी शर्ट फ्री का बैनर लगा हुआ था। जैसे-जैसे मैं बाज़ार की गहराइयों में घुसता चला गया फ्री फ्री फ्री के तख्ती-बैनरों और चिल्लाचोट ने मुझे बुरी तरह आतंकित कर दिया था। बाज़ार भर में जबरदस्ती विज्ञापन पढ़ाया जा रहा था, एक अंडरवियर पर दो अंडरवियर फ्री, एक बनियान पर एक बनियान फ्री, एक लक्स पर एक लक्स फ्री, एक आइसक्रीम पर एक आइसक्रीम फ्री। फ्रिज पर माइक्रोवेव फ्री, माइक्रोवेव पर राइस कुकर फ्री, साइस कुकर पर बाउल सेट फ्री आदि-आदि और लोग मारा-मारी करके खरीद भी रहे थे। गोया यह फ्री का माल अगर उनके हाथ से निकल गया तो उनका सब कुछ लुट जाएगा।
भारतीय बाज़ारों में यूँ फ्री-फंड में माल बँटता हुआ देखकर लग रहा है हम कहीं गलती से कहीं समाजवाद, साम्यवाद के दौर में तो प्रवेश नहीं कर गए! या कि रामराज्य आ गया है और पूँजीवाद का चरित्र सुधर रहा है। वामपंथी कहते हैं कि साम्यवाद में बाज़ार नहीं रहेगा, माल मुफ्त में मिलेगा, मुनाफे की प्रवृति खत्म हो जाएगी। लो भाई माल मुफ्त में मिल रहा है। हिन्दुवादी कहते हैं रामराज्य आ जाएगा तो पूँजीपति की नियत ठीक हो जाएगी, वो मुनाफे की लूटमार नहीं करेगा। देढ़ हज़ार की मिक्सी पर पाँच हज़ार मूल्य के दस-दस आयटम बुला-बुला कर मुफ्त दिये जा रहे हैं, तो इसे सेठजी की नियत दुरुस्त होना ही तो कहना पडे़गा। पक्का आ गया भाई रामराज्य। 
मुझ जैसे मुफ्त के माल से दूर भागने वाले सयाने खरीदारों को इस फ्री-फंड के बाज़ार कुछ सामग्री इतनी सफाई से थमाई जाती हैं कि पता ही नहीं चल पाता कि कब उन्होंने उसकी कीमत चुका दी। जैसे बच्चे की ज़िद पर आपने खरीदा पोटेटो चिप्स और साथ में उसकी ज़ोरदार पेकिंग भी खरीद लाए जिसका स्थान सीधा डस्टबिन में है। एक शर्ट खरीदी आपने, कम्पनी ने आपको आकर्षक छपाई वाला महंगा पैकिंग मटेरियल, प्लास्टिक, पॉलीथिन, फोम, पुट्ठा बगैरह यहाँ तक कि आलपिन भी बेच दी आप खुशी-खुशी घर ले आए। माल की कीमत के साथ ही पेकिंग की भी कीमत वसूल की जाकर बाकायदा उसकी रसीद दी जाती है और यह खूबसूरत कचरा घर डस्टबिन और अटाले की शोभा बढ़ाने के लिए भेज दिया जाता है।
रोजमर्रा उपयोग की वस्तुओं जैसे चाय, कॉफी, साबुन, वॉशिंग पाउडर, टूथपेस्ट, ब्रश आदि-आदि सैकड़ों चीजों के साथ चम्मचें, कटोरियाँ, बरनियाँ, डिब्बे-डुब्बे, कप, मग्गे बगैरह कई चीज़ें थमाई जाती हैं और हम मुफ्तखोरी की अपनी आदत से मजबूर यह ना जानते हुए कि इसकी कीमत भी हम चुका चुके हैं, दॉत निपोरते हुए चले आते हैं। यह तमाम फालतू का कचरा बड़ी सफाई से हमारी आधी से ज्यादा कमाई उड़ा ले जा रहा है और व्यापार का आंकड़ा दिन दुगना रात चौगुना बढ़ रहा हैं। बेचने वालों की तिजोरियाँ भर रही हैं और अपने घर में कचरा डंप हो रहा है।
हम जैसे लाखों हैं जिनकी तनख्वाह से कुछ बचता ही नहीं है लिहाज़ा बाज़ार की भेंट भी नहीं चढ़ पाता । हम तो बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं कि कब एक तनख्वाह पर दो तनख्वाह फ्री बँटे तो हम भी बाज़ार की भावी संभावनाओं के मज़े लूटें। क्या पता एक नैनो पर दो नैनो फ्री मिलने लगें। इंतज़ार कर रहे हैं कि बाज़ार इतना उदार हो जाए कि एक फ्लेट पर दो फ्लेट फ्री और एक बंगले पर दो बंगले मुफ्त मिलें। हम भी मुफ्त के माल का सुख ले लें।
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2 टिप्‍पणियां:

  1. आपको दीपावली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ !

    कल 23/अक्तूबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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