शनिवार, 18 जून 2011

बनना ही चाहिए एक दुष्टता मापी यंत्र


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//         
            इंसान के अन्दर दुष्टताका एक नैसर्गिक गुण इस कदर कूट-कूट कर भरा हुआ है कि मत पूछिए। नाना प्रकार की दुष्टता से लैस कई बंदे हमारे इर्द-गिर्द पसरे पड़े हैं जो हमारी नाक में दम कर रखते होंगे। कोई, ठीक घर से बाहर निकलते ही आपके ऊपर कचरे का अभिषेक कर यह जता देता होगा कि कल रात उसने क्या खाया है, कोई रोज़ आपकी मोटर साईकिल से पेट्रोल चुराता और कोई उसकी हवा निकालकर अपनी दुष्टता का प्रदर्शन करता होगा। मेरी बिल्डिंग में एक दुष्ट को सबकी कॉलबेल बजाकर भागने का शौक है, वह एक साथ दो या अधिक लोगों की कॉलबेल बजाकर उनको आपस में लड़ाने में महारत रखता है।
          राजनैतिक क्षेत्र में भी दुष्टों का बड़ा वर्चस्व रहता आया है, वे अपने इस विलक्षण गुण की बदौलत सबको ठेलते हुए शीर्ष पर पहुँच जाते हैं। मौजूदा गठबंधन की राजनीति में खासतौर से दुष्टों की ही मौज है। एक अदद समर्थन के बदले वे पूरी मिनिस्ट्री हथिया लेते हैं। सरकारी क्षेत्र में, जहाँ कुछ भ्रष्ट लोग चूहों की तरह देश को कुतर-कुतर कर खाने में लगे रहते हैं वहाँ कुछ उनसे भी बड़े दुष्ट उनके खाने पर नज़र गढ़ाए उनके पास जा पहुँचते हैं- क्यों जी, अकेले-अकेले खा रहे हो, हम क्या तुम्हारा मुँह देखें ? भ्रष्ट कहता है- दुष्ट कहीं का, आ गया हिस्सा माँगने। दुष्ट इस तरह अपनी दुष्टता की दम पर जगह-जगह से हिस्सा बटोरता हुआ आराम से घर-परिवार के खर्चे चलाता रहता है।
          दुष्टता के मामले में प्रेमिकाओं का कोई सानी नहीं है, मौका लगते ही वे प्रेमियों को ऐसे टुँगाती हैं कि पूछो मत। अपनी बात मनवाने के लिए वह भोले-भाले प्रेमी से नाक रगड़वा लेती है, कान पकड़कर उठक-बैठक लगवा लेती है, और कोई प्रेमिका तो शायद बीच बाज़ार में प्रेमी को मुर्गा बनाकर मजे़ लिया करती हो। आजकल मोबाइल दुष्टतापूर्वक एक दूसरे को सताने के प्रभावी यंत्र के रूप में सामने आया है।
          देश में तापमापी यंत्र है, वर्षामापी यंत्र है, शुष्कतामापी यंत्र है, आद्रतामापी यंत्र है, मगर दुष्टतामापी यंत्र नहीं है। इस बढ़ती जा रही दुष्टता को कंट्रोल में रखने के लिए एक अदद दुष्टतामापी यंत्र होना ही चाहिए।

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